Tuesday, September 4, 2018

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होकी खिलाड़ी ध्यानचन्द्र जीवन परिचय | Dhyan Chand Biography In Hindi
Vibhuti August 21, 2018 जीवन परिचय1 Comment
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होकी खिलाड़ी ध्यानचन्द्र जीवन परिचय | Dhyan Chand Biography In Hindi
ध्यानचंद भारत के महान होकी प्लेयर थे, उन्हें दुनिया के महान होकी प्लेयर में से एक माना जाता है. ध्यान चन्द्र को अपने अलग तरीके से गोल करने के लिए याद किया जाता है, उन्होंने भारत देश को लगातार तीन बार ओलिंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था. अंतराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस का इतिहास जानने के लिए पढ़े. यह वह समय था, जब  भारत की हॉकी टीम में सबसे प्रमुख टीम हुआ करती थी. ध्यानचंद का बॉल में पकड़ बहुत अच्छी थी, इसलिए उन्हें ‘दी विज़ार्ड’ कहा जाता था. ध्यानचंद ने अपने अन्तराष्ट्रीय खेल के सफर में 400 से अधिक गोल किये थे. उन्होंने अपना आखिरी अन्तराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला था. ध्यानचंद को अनेको अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

होकी खिलाड़ी ध्यानचन्द्र जीवन परिचय  (Hocky Player Dhyan Chand Short Biography In Hindi)
क्रमांक
जीवन परिचय बिंदु
ध्यानचंद जीवन परिचय
1.
पूरा नाम
ध्यानचंद
2.
जन्म
29 अगस्त 1905
3.
जन्म स्थान
इलाहबाद, उत्तरप्रदेश
4.
पिता
समेश्वर दत्त सिंह
5.
हाइट
5 फीट 7 इंच
6.
प्लेयिंग पोजीशन
फॉरवर्ड
7.
भारत के लिए खेले
1926 से 1948 तक
8.
मृत्यु
3 दिसम्बर 1979
ध्यानचंद का जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहबाद में 29 अगस्त 1905 को हुआ था. वे कुशवाहा, मौर्य परिवार के थे. उनके पिता का नाम समेश्वर सिंह था, जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के रूप कार्यरत थे, साथ ही होकी गेम खेला करते थे. ध्यानचंद के दो भाई थे, मूल सिंह एवं रूप सिंह. रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह होकी खेला करते थे, जो अच्छे खिलाड़ी थे.
ध्यानचंद के पिता समेश्वर आर्मी में थे, जिस वजह से उनका तबादला आये दिन कही न कही होता रहता था. इस वजह से ध्यानचंद ने कक्षा छठवीं के बाद अपनी पढाई छोड़ दी. बाद में ध्यानचंद के पिता उत्तरप्रदेश के झाँसी में जा बसे थे.
होकी की शुरुवात (Dhyan Chand Hockey Career) –
युवास्था में ध्यानचंद को होकी से बिलकुल लगाव नहीं था, उन्हें रेसलिंग बहुत पसंद थी. उन्होंने होकी खेलना अपने आस पास के दोस्तों के साथ खेलना शुरू किया था, जो पेड़ की डाली से होकी स्टिक बनाते थे, और पुराने कपड़ों से बॉल बनाया करते थे. 14 साल की उम्र में वे एक होकी मैच देखने अपने पिता के साथ गए, वहां एक टीम 2 गोल से हार रही थी. ध्यानचंद ने अपने पिता को कहाँ कि वो इस हारने वाली टीम के लिए खेलना चाहते थे. वो आर्मी वालों का मैच था, तो उनके पिता ने ध्यानचंद को खेलने की इजाज़त दे दी. ध्यानचंद ने उस मैच में 4 गोल किये. उनके इस रवैये और आत्मविश्वास को देख आर्मी ऑफिसर बहुत खुश हुए, और उन्हें आर्मी ज्वाइन करने को कहा.
1922 में 16 साल की उम्र में ध्यानचंद पंजाब रेजिमेंट से एक सिपाही बन गए. आर्मी में आने के बाद ध्यानचंद ने होकी खेलना अच्छे से शुरू किया, और उन्हें ये पसंद आने लगा. सूबेदार मेजर भोले तिवार जो ब्राह्मण रेजिमेंट से थे, वे आर्मी में ध्यानचंद के मेंटर बने, और उन्हें खेल के बारे में बेसिक ज्ञान दिया. पंकज गुप्ता ध्यानचंद के पहले कोच कहे जाते थे, उन्होंने ध्यानचंद के खेल को देखकर कह दिया था कि ये एक दिन पूरी दुनिया में चाँद की तरह चमकेगा. उन्ही ने ध्यानचंद को चन्द नाम दिया, जिसके बाद उनके करीबी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. इसके बाद ध्यान सिंह, ध्यान चन्द बन गया.
ध्यानचंद का शुरुवाती करियर (Dhyan Chand Sports Career) –
ध्यानचंद के खेल के ऐसे बहुत से पहलु थे, जहाँ उनकी प्रतिभा को देखा गया था. एक मैच में उनकी टीम 2 गोल से हार रही थी, ध्यानचंद ने आखिरी 4 min में 3 गोल मार टीम को जिताया था. यह पंजाब टूर्नामेंट मैच झेलम में हुआ था. इसके बाद ही ध्यानचंद को होकी विज़ार्ड कहा गया.
ध्यानचंद ने 1925 में पहला नेशनल होकी टूर्नामेंट गेम खेला था. इस मैच में विज, उत्तरप्रदेश, पंजाब, बंगाल, राजपुताना और मध्य भारत ने हिस्सा लिया था. इस टूर्नामेंट में उनकी परफॉरमेंस को देखने के बाद ही, उनका सिलेक्शन भारत की इंटरनेशनल होकी टीम में हुआ था.
ध्यानचंद अन्तराष्ट्रीय खेल करियर (Dhyan Chand Interesting Facts) –
1926 में न्यूजीलैंड में होने  वाले एक टूर्नामेंट के लिए ध्यानचंद का चुनाव हुआ. यहाँ एक मैच के दौरान भारतीय टीम ने 20 गोल किये थे, जिसमें से 10 तो ध्यानचंद ने लिए थे. इस टूर्नामेंट में भारत ने 21 मैच खेले थे, जिसमें से 18 में भारत विजयी रहा, 1 हार गया था एवं 2 ड्रा हुए थे. भारतीय टीम ने पुरे टूर्नामेंट में 192 गोल किये थे, जिसमें से ध्यानचंद ने 100 गोल मारे थे. यहाँ से लौटने के बाद ध्यानचंद को आर्मी में लांस नायक बना दिया गया था. 1927 में लन्दन फोल्कस्टोन फेस्टिवल में भारत ने 10 मैचों में 72 गोल किये, जिसमें से ध्यानचंद ने 36 गोल किये थे.
1928 में एम्स्टर्डम ओलिंपिक गेम भारतीय टीम का फाइनल मैच नीदरलैंड के साथ हुआ था, जिसमें 3 गोल में से 2 गोल ध्यानचंद ने मारे थे, और भारत को पहला स्वर्ण पदक जिताया था. 1932 में लासएंजिल्स ओलिंपिक गेम में भारत का फाइनल मैच अमेरिका के साथ था, जिसमें भारत ने रिकॉर्ड तोड़ 23 गोल किये थे, और 23-1 साथ जीत हासिल कर स्वर्ण पदक हासिल किया था. यह वर्ल्ड रिकॉर्ड कई सालों बाद 2003 में टुटा है. उन 23 गोल में से 8 गोल ध्यानचंद ने मारे थे. इस इवेंट में ध्यानचंद ने 2 मैच में 12 गोल मारे थे.
1932 में बर्लिन ओलिंपिक में लगातार तीन टीम हंगरी, अमेरिका और जापान को जीरो गोल से हराया था. इस इवेंट के सेमीफाइनल में भारत ने फ़्रांस को 10 गोल से हराया था, जिसके बाद फाइनल जर्मनी के साथ हुआ था. इस फाइनल मैच में इंटरवल तक भारत के खाते में सिर्फ 1 गोल आया था. इंटरवल में ध्यानचंद ने अपने जूते उतार दिए और नंगे पाँव गेम को आगे खेला था, जिसमें भारत को 8-1 से जीत हासिल हुई और स्वर्ण पदक मिला था.
ध्यानचंद की प्रतिभा को देख, जर्मनी के महान हिटलर ने ध्यानचंद को जर्मन आर्मी में हाई पोस्ट में आने का ऑफर दिया था, लेकिन ध्यानचंद को भारत से बहुत प्यार था, और उन्होंने इस ऑफर को बड़ी शिष्टता से मना कर दिया.
ध्यानचंद अन्तराष्ट्रीय होकी को 1948 तक खेलते रहे, इसके बाद 42 साल की उम्र में उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया. ध्यानचंद इसके बाद भी आर्मी में होने वाले होकी मैच को खेलते रहे. 1956 तक उन्होंने होकी स्टिक को अपने हाथों में थमा रहा.
ध्यानचंद मृत्यु (Dhyan Chand Death) –
ध्यानचंद के आखिरी दिन अच्छे नहीं रहे. ओलिंपिक मैच में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के बावजूद भारत देश उन्हें भूल गया. उनके आखिरी दिनों में उन्हें पैसों की भी कमी थी. उन्हें लीवर में कैंसर हो गया था, उन्हें दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में भर्ती कराया गया था. उनका देहांत 3 दिसम्बर 1979 को हुआ था.
ध्यानचंद अवार्ड्स व अचीवमेंट (Dhyan Chand Award) –
1956 में भारत के दुसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से ध्यानचंद को सम्मानित किया गया था.
उनके जन्मदिवस को नेशनल स्पोर्ट्स डे की तरह मनाया जाता है.
ध्यानचंद की याद में डाक टिकट शुरू की गई थी.
दिल्ली में ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम का निर्माण कराया गया था.

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